वास्तु शांति पूजा और गृह प्रवेश, वास्तु संबंधी दोष की शांति के लिए की जाती है। वास्तुदोष तब होता है जब व्यक्ति गलत जगह पर घर का कोई स्थान निर्माण कराता है। जैसे दक्षिण या पश्चिम दिशा में मुख्य द्वार, मुख्य द्वार के सामने कुआ, मुख्य द्वार खोलते ही सीढ़ियां, उत्तर या आग्नेय दिशा में बेडरूम, देवघर पश्चिम या दक्षिण दिशा में होने से परेशानियाँ उठानी पड़ती है।
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर भगवान ब्रह्मदेव ने वास्तु शास्त्र के नियमों की रचना की थी। इसीलिए हर मनुष्य को वास्तु देवता की प्रार्थना एवं पूजन करने के पश्चात ही गृह प्रवेश करना चाहिए। अन्यथा मनुष्य को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होने की तीव्र संभावना होती है।
गृह प्रवेश के लिए कुलदेवता एवं वास्तुपुरुष का पूजन किया जाता है।
वास्तुपुरुष हमारे वास्तु के संरक्षक देवता है, जिन्हे वास्तुदेवता भी कहा जाता है। पौराणिक कथानुसार वास्तुपुरुष का जन्म देव-दानव युद्ध के दौरान भगवान शंकर के पसीने की बूंद से हुआ। वास्तुपुरुष विराट रूप में जन्मा होने के कारण अत्यंत शक्तिशाली था। देव-दानव युद्ध में देवता और दानव बहुत घबरा गए। देवताओं ने सोचा की यह विराट पुरुष दानवों की ओर से है, तथा दानवों को लगा की वह देवताओं की ओर से है।
जन्म लेते ही इस विराट पुरुष को बहुत भूक लगी, उसने भगवान शंकर से वरदान माँगा की उसे तीनो लोक खाने की आज्ञा दे। भोलेनाथ ने तथास्तु कहकर उसे वरदान दे दिया। यह सुनते ही देव-दानव दोनों घबरा गए। यह विराट पुरुष सबसे पहले पृथ्वी को खाने के लिए आगे बढ़ा। सभी देव-दानवों ने साथ मिलकर उस विराट पुरुष को धरती पर गिरा दिया। वह विराट पुरुष धरती पर औंधे मुँह गिर पड़ा उसी समय उसका मुख उत्तर-पूर्व दिशा में तथा पैर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर थे।
पैंतालीस देवता एवं राक्षसगणों द्वारा इस विराट पुरुष को पकड़ कर रखा गया था। तभी इस विराट पुरुष को धरती के अंदर रहने की आज्ञा भगवान ब्रह्मदेव ने की, तबसे इसे वास्तुदेवता का मान प्राप्त हुआ है। इस वास्तुदेवता का सर ईशान दिशा की ओर तथा पैर नैऋत्य, भुजाएँ पूर्व और उत्तर दिशा की ओर एवं पाँव दक्षिण और पश्चिम दिशा की ओर स्थित है। यह वास्तुपुरुष पृथ्वी पर अधोमुख स्थिति में स्थित होने से हमें वास्तु का निर्माण करते वक्त इन तथ्यों में सावधानी बरतनी चाहिए।
जिस घर में परिवार के सदस्यों में छोटी छोटी बातों को लेकर लड़ाई या विवाद होता है, तथा आपसी मनमुटाव के कारण तनाव होता है, वहाँ अपने घर में वास्तु शांति पूजा कराना अनिवार्य होता है। जिन लोगों का घर में किसी भी कार्य में मन नहीं लगता, मन में उदासी रहती है, उन लोगों ने भी वास्तु शांति पूजा करना अति आवश्यक है। यदि घर में वास्तु दोष है तो घर में निवास करने वाले सदस्यों की सेहत पर इसका बुरा असर पड़ता है, ऐसी परिस्थिति में घर में वास्तु शांति पूजा अवश्य की जानी चाहिए। गृह प्रवेश पूजा पद्धति में सर्वप्रथम वास्तु शांति पूजा करना अनिवार्य है। वास्तु शांति पूजन के बाद ही गृह प्रवेश किया जाता है, क्योंकि वास्तु शांति पूजन से वास्तु में आए हुए सभी दोष नष्ट होते है। वास्तुदोष के ख़त्म होने पर वास्तु रहने के लिए सर्वोत्तम होती है।
उचित मुहूर्त देखकर वास्तु में प्रवेश किया जाता है, जैसे दशहरा, दिवाली, गुढ़ीपाड़वा, अक्षय तृतीया, आदि। अगर आप पहले से ही वास्तु में निवास कर रहे हैं, तब भी आपको वास्तु शांति पूजा करना अनिवार्य है।
वास्तुपूजन में ये प्रक्रियाएं पूजन का महत्वपूर्ण अंग होती है - स्वस्तिवचन, संकल्प, श्री गणेश पूजन, कलश स्थापना एवं कलश पूज, अभिषेक, सोलहमातृका पूजन, वसोधरा पूजन, नांदीश्राद्ध, आचार्य का वरण, योगिनी पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, अग्नेय स्थापना, नवग्रह स्थापना और नवग्रह पूजन, वास्तु मंडल पूजन और वास्तु मंडल स्थापना, गृह हवन, वास्तु देवता होम, बलिदान पूजा, पूर्णाहुति, वास्तुपुरुष-प्रार्थना, दक्षिणा संकल्प, ब्राह्मण भोजन, उत्तर भोजन, अभिषेक, विसर्जन आदि प्रक्रिया की जाती है। वास्तु शांति पूजा के दौरान वास्तु पुरुष की प्रतिमा को घर के पूर्व दिशा में एक गड्ढे में दबाकर स्थापित की जाती है। वास्तु पुरुष की प्रतिमा को हररोज नैवेद्य दिया जाना चाहिए, भूल होने पर पूर्णिमा या अमावस के दिन भी भोग लगाया जाता है।
अर्थ - हे वास्तुदेवता, हम आपकी प्रार्थना करते है। हम आपका आवाहन करते है, हमारी स्तुति एवं प्रार्थना को सुनकर हम सभी उपासकों को व्याधि से मुक्ति दीजिए। इस वास्तु का दोष नष्ट करके इसमें निवास करने वाले हमारे परिवार के सदस्यों को तथा हमारे पशुओं को रहने के लिए आशीर्वाद दीजिए।
वास्तु शांति पूजा के प्रभाव से घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास बनता है।
घर में रहने वाले सदस्यों को सुख की प्राप्ति होती है।
घर में बरकत रहती है एवं धन से संबंधित सभी समस्याएँ दूर होती है।
वास्तु में सदा प्रसन्नता महसूस होती है एवं वातावरण में शांति प्राप्त होती है।
घर में रहने वाले सदस्यों का रोग एवं बीमारियों से बचाव होने से आरोग्य में सुधार होता है।
वास्तु की जगह पर स्थित अमंगलता का नाश होता है तथा सभी प्रकार के अनिष्ट दूर होते है।
घर में देवी-देवताओं की उपस्थिति होने से भूत-प्रेतादि की बाधाएं दूर भागती है।
कोई भी पूजा करने के लिए जरुरी होता है अच्छा शुभ मुहूर्त।
गृह प्रवेश शुभ मुहूर्त पंडितजी द्वारा भारतीय पंचाग में शुभ नक्षत्र देखकर आपको दिया जाता है।
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