त्रिम्बकेश्वर १२ ज्योतिर्लिंगों में एक प्रधान ज्योतिर्लिंग है। त्रिम्बकेश्वर ४ कुंभमेले की जगहो में से एक है ,
यह तीर्थ क्षेत्र ,कुम्भ क्षेत्र भी है, जहा पर दक्षिण गंगा गोदावरी का उगम होता है।
यहाँ पर कुम्भ मेले में हिन्दुस्थान के सारे पंथ,उपपंथ एकट्ठा होते है, तीर्थराज कुशावर्त में आस्था की डुबकी लगाने।
कुम्भ को एक ‘largest human gathering on earth’ कहते है,यह एक मानवी सम्मेलन है।
उस मानवी सम्मेलन में हज़ारो वर्षो का सनातन धर्म का परंपरा है ,उसकी शाखा ये है उसकी उपशाखाये है उससे जुड़े विद्वान् त्रिम्बकेश्वर में आते है। उनके साथ मुलाकात करने का मौका मिलता है।
त्रिम्बक (त्रि नि अम्बक ) तीन नेत्रों वाले भगवान शिव ये त्रिंबक है।
त्रिम्बकेश्वर यह ज्योतिलिंग का गांव है जहा के प्रधान देवता भी त्रिम्बकेश्वर है लेकिन जो मंदिर है जो बनाया है पेशवा जी ने उन्होंने मंदिर के द्वार पर एक शिला लेख में भगवान का उल्लेख ‘त्रिलोचन ‘ किया है यानि तीन लोचन यानि नेत्र।
ये तीन नेत्र सूर्य ,चन्द्रमा और अग्नि है ,
ये तीन धारण करने वाले देवता को त्रिम्बक कहते है
महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी इन तीन आम्बियोंके ईश्वर ब्रम्हा,विष्णु,और महेश ये यहाँ पर एकाकार हुए है ,इसलिए भी तीन अम्बियोंके ईश्वर यानि त्रिम्बकेश्वर कहा जाता है
इस बारें में रौचक कथा लिंगपुराण में है ,लिंगपुराण अष्टद्वाश पुराणों में से है , “शैव” सिधान्तो में इनका बड़ा महत्वा है।
लिंगपुराण कहता है
“तथा सूर्यस्य सोमस्य, तथा सोमस्य सूर्यस्य वन्ध्या अग्नि त्रयस्याच अम्बा उमा महादेव यंबोकास्तु त्रिंबक “
इसका मतलब सोम सूर्य अग्नि ये तीनो अग्नि है जिससे प्रकाश आता है ,ये तीन अग्नि की माता अम्बा है और इन तीन अग्नि योंके पिता अम्बक यही त्र्यम्बक है।
त्रिम्बकेश्वर ये भारत वर्ष के भारत द्वीप के जम्बूद्वीप नाम का जो द्वीप है जहा पर दण्डक अरण्य है। यह गौतम आश्रम क्षेत्र है।
लेकिन इसका पुराण नाम त्रिसंध्या क्षेत्र है ये जो तीन अग्नि के माता और पिता है उनके नाम से है त्रिम्बक नाम पड़ा है
यही कहानी हमें लिंगपुराण बताता है
त्र्यंबकेश्वर भगवान को आद्य ज्योतिर्लिंग कहा जाता है ,ये शिव तत्त्व है।
इसकी कहानी बड़ी रोचक है
एक बार ऐसा हुआ श्रुष्टि के नियमन करने वाले दो तत्त्व है एक है शिव तत्त्व एक है शक्ति तत्त्व।
इसको हम आकाश और धरा भी बोल सकते है , इसको हम निर्गुण निराकार भगवान और सर्वगुण साकार प्रकृति भी बोल सकते है ये दो तत्वा है यही दुनिया को चलाते है।
एक दिन ऐसा हुआ की शिव तत्त्व और शक्ति तत्त्व, इनमे ‘में बड़ा हु’ इसकी स्पर्धा शुरू हुई
और शिव तत्त्व ने अपना आकर बढ़ाना शुरू किया।
शक्ति तत्त्व ने भी अपना आकर बढ़ाना शुरू किया
इसमें ब्रम्हा जी ने बनायीं समस्त सृष्टि व्यापित होने लगी, उनके विस्तार से सबके मन में भय आने लगा।
और माताजी की शक्ति (शक्ति तत्त्व) का सामर्थ्य कम लगने लगा तो उन्होंने भगवान विष्णु को याद किया।
तो भगवान विष्णु भी शक्ति तत्त्व के साथ मिल गए और उन्होंने अपना विस्तार जारी रखा
तो यह देख के विष्णु भगवान ने अंतर्मन से भगवान शिव से संवाद किया ,
तब विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से शिव शक्ति का १२ टुकड़ो में विभाजन किया और पृथ्वी के ऊपर स्थापित किया उसको बारा ज्योतिर्लिंग कहते है।
इस प्रक्रिया में जो बारा चिंगारिया निकली उसको बारा आदित्य के नाम से विख्यात होगये। इससे सृष्टि का नियमन शुरू हुआ ,जो बारा आदित्य यानि १२ मास।
साल के और हर एक महीने में सूर्य भगवान अलग अलग प्रकाश लेके आते है। जिसको द्वादशादित्यम बोलते है
ऐसेही बारा ज्योतिर्लिंग है इसमें से एक आद्य ज्योतिर्लिंग कहा जाने वाला श्री क्षेत्र त्रिम्बकेश्वर है
जो गौतम ऋषि की तपस्या से परमात्मा उनको वर देने के लिए प्रकट हुए जो गंगा पाने की इच्छा से यहाँ पर तप कर रहे थे और उनकी इच्छा से गंगा जी उनको प्राप्त हुई।
लेकिन भगवान के सर के ऊपर प्रकट होना गंगाजी को पसंद नहीं था इसलिए गंगा जी ने भगवान से वचन लिया की आप भी मेरे साथ यहाँ रहेंगे तो सारे देवताओ ने शिव जी के साथ उनको वचन दिया की हम भी यहाँ रहेंगे और परमात्मा ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान गंगाजी के साथ यहाँ विराजमान हुए वो क्षेत्र है श्री क्षेत्र त्रिम्बकेश्वर।
पद्मा पुराण में कहा गया है
“यस्य जन्म सहस्रनाम ऊनयम भवति संचितः तशिव त्रिम्बक बुद्धिर्भवति मामृता”
जिसके सहस्रो जन्म का पुण्य संचित बनकर सामने आता है।उसीको त्रियम्बक आने की इच्छा होती है।
ऐसेही अदि शंकराचार्य जी ने आद्य ज्योतिर्लिंग के बारेमें कहा है की सह्याद्रि शीर्ष के ऊपर विमल एक ज्योतिर्लिंग है जिसके दर्शन से सभी पापको का नाश होता है
ब्रम्हा जी ने जगतउत्पत्ती के लिए तप ऐसी स्थान पर किया था। त्रिम्बकेश्वर यह ऐसा स्थान है जहा तीनो देवता ब्रम्हा,विष्णु ,महेश निवास करते है। इसके साथ ही अनुसया और दत्तात्रय की कहानी भी जुडी हुई है।
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
सर्वार्थ से शिव और पार्वती लेकिन वो नारायणी भी है, ब्रम्हाणी भी है। त्रिसंध्या यहाँ त्रिमूर्ति के साथ यहाँ विराजमान है
वास्तव में इस ज्योतिर्लिंग का स्वरुप अन्य ज्योतिर्लिंग से अलग है।
साधारणत: शिवलिंग उतीथ यानि शालूंगा रहता है। त्रिम्बकेश्वर में शलङ्का नहीं है, यहाँ पर एक गड्ढा है
उस गड्ढे में अंगुष्ठकार तीन लिंगा है। ऊपर से गोदावरी जीका जल धीरे धीरे तीनो लिंगोके ऊपर अभिषेक कर रहा है ,ये ईश्वर का स्वरुप है। जो त्रिगुणात्मक है जो शिव है।
कुम्भ मेले में अलग अलग पंथ नहाने आते है जिनमें एक जूना आखाड़ा है। जो निल पर्वत पर विराजमान है।
उनके ये प्रधान देवत है रुद्राकार शिव या रुद्रावतार दत्त। इस रूप में जूना आखाड़े के महंत शस्त्रओके साथ भगवान शिव का पूजन करते है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब शिव जी तारकासुर से युद्ध कर रहे थे तब महाकाली ने उनका साथ दिया था
इसीप्रकार उत्पत्ति,स्तिथि और लय के करता ये तीनो एकाकार है। और शिव के रूप में है
इसीलिए शिव जी का रूप है वो मृत्यु के परे है यानि मृत्युंजय है वो घ्यान मृत्यु के परे है जो आत्मा के साथ जाता है।
मृत्युके साथ ही हम अपना ध्यान ,अनुभूति साथ लेके जाते है और वो घ्यान और अस्तितः उस लोक में जाने के बाद रहता है क्युकी शिव अमर है। शिव मृत्यु के पहले भी है ,मृत्यु के बाद भी शिव है।
अनु ,रेनू, कंकर हर जगह शंकर है तो ऐसा ये ज्योतिर्लिंग है
अपने कर्म और बंधन की वजेसे जो पीड़ा हम मृत्यु लोक में भोगते है उससे पर करने का सामर्थ्य भगवान शिव और माता पार्वती में है
तो ऐसा श्री क्षेत्र त्रयम्बकेश्वर का इतिहास है।
31 Dec '21 Friday